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महरि मुदित उलटाइ कै मुख चूमन लागी / सूरदास

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महरि मुदित उलटाइ कै मुख चूमन लागी ।
चिरजीवौ मेरौ लाड़िलौ, मैं भई सभागी ॥
एक पाख त्रय-मास कौ मेरौ भयौ कन्हाई ।
पटकि रान उलटो पर्‌यौ, मैं करौं बधाई ॥
नंद-घरनि आनँद भरी, बोलीं ब्रजनारी ।
यह सुख सुनि आई सबै, सूरज बलिहारी ॥

श्रीव्रजरानी (प्रभु को) उलटा करके (पीठ के बल सीधे लिटाकर) आनन्दित होकर उनके मुखका चुम्बन करने लगीं । (बोलीं) `मेरा प्यारा लाल चिरजीवी हो ! मैं आज भाग्यवती हो गयी। मेरा कन्हाई साढ़े तीन महीने का ही हुआ है, पर आज जानुओं को टेककर स्वयं उलटा हो गया । मैं आज इसका मंगल बधाई बँटवाऊँगी ।' आनन्द भरी श्रीव्रजरानी ने व्रज की गोपियों को बुलवाया । यह संवाद पाकर सब वहाँ आ गयीं । सूरदास इस छबिपर बलिहारी हैं।