है ऋतुओं की संधि
दिशायें हुई सयानी रे
दुबली --पतली धार
बही नदिया के कूलो में
बड़े हो गये शूल
शीश तक चढ़े बबूलों में
क्या जगा संकोच
जम गया बहता पानी रे
कहे ना जाए दर्द
हुआ कुछ ऐसा अंधेरों को
चंपक -- अजुरी गहे
मनौती गूँथे गज़रों को
है तन --मन कि बात
सभी जानी -अंजानी रे
थके -थके से दिखे
गगन चढ़ते सूरज राजा
कैसे बिरहा बोल
सुनाए बसवट का बाजा
पीली -पीली धूप
हुई है दिन कि रानी रे
है ऋतुओं कि संधि
दिशायें हुई सयानी रे