भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कड़वे आचमन के बाद / सोम ठाकुर

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:49, 24 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सोम ठाकुर |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem> आज कड़व...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज कड़वे आचमन के बाद
वंशी को समर्पित हैं--
भारी आँखें, सहमते गीत
भारी मान

ये हमारी मुक्त चंद्रा -घटियाँ हैं
प्यार का संवाद इनमें साँस लेगा
सभ्यता के द्वार महकी रोशनी को
एक अनहदनाद फिर विस्तार देगा
खोल देंगे सप्तकों की गाँठ
पीली सरगमों के आँचलों में
बाँध देंगे हम हरे गुंजन

रच रही जो राग संजीवन हमारा
मातमो से घिर गई शहनाइयाँ वे
कर रही शृंगार मीठे स्वप्न से जो
धन्य हैं संसार की अगनाईयाँ वे
सौंप देंगे हम समय को आज
अपने गुनगुनाते आँसुओ से
धुले दर्पण, फागुनी चितवन

फिर हमारी ही प्रतीक्षा में कहीं पर
अनमने श्यामल गुलाबों के नयन हैं
फूटने को हैं कहीं अंकुर नुकीले
पत्तियों के अनसुने रेशम -वचन हैं
बाँट देंगे हम अनन्त वसंत
अपना बस यही धन है
हमारा बस यही है मन
यही है प्रन
आज कड़वे आचमन के बाद