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मृत्यु-अक्षांशो तक / सोम ठाकुर

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उफ़ने ज्वालामुखी मृत्यु - अक्षान्शो तक
गूंगी -नंगी सदी नहाई लावे में

गर्म आँधियाँ बिधने लगी हरे वन में
लपटों के झरने झरते, उबली नदियाँ
लाल -बैंज़नी दाहो के बीच भूनी नज़रे
पंख खोलते हुए मर गयी जलपरियाँ
हाड़ -माँस के ढेर लगे हैं मोडों पर
चील -गिद्ध हैं अपने - अपने दावे में

चीख लिए लौटे भूकंप दिशाओ से
पर्तों -दबा गुँथी बाहों में कसा गगन
चौंकी बस्ती, बहके शहरों - गावों को
फिर निचोड़ देगी चट्टानों की ऐंठन
अंगारे, धसती धरती, गंधकी धुआँ
भेद बहुत है मौसम के बर्ताव में

अभिशापित उर्जा -दैत्यों की होड़ यहाँ
शिलालेख लिख देगी नये अमंगल के
अंकित कर दन्शित उभार की नीचाई
हम साँचे बन जाएँगे बीते कल के
वक्त हमें 'फाँसिल' कर देगा, कौन यहाँ
आए श्वेत कपोतों के बहकावों में
गूंगी नदी सदी नहाई - लावे में