भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छीन लेगी नेकियाँ... / ओमप्रकाश यती
Kavita Kosh से
Omprakash yati (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:50, 26 फ़रवरी 2012 का अवतरण ('{{kkGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = ओमप्रकाश यती |संग्रह= }} {{KKcatGhazal}} <poem> छ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
छीन लेगी नेकियाँ ईमान को ले जाएगी
भूख दौलत की कहाँ इंसान को ले जाएगी
आधुनिकता की हवा अब तेज़ आँधी बन गई
सोचता हूँ किस तरफ़ संतान को ले जाएगी
शहर की आहट दिखाएगी हमें सड़कें नई
फिर हमारे खेत को, खलिहान को ले जाएगी
बेचकर गुर्दे, असीमित धन कमाने की हवस
किस जगह इस दूसरे भगवान को ले जाएगी
सिन्धु हो,सुरसा हो,कुछ हो किन्तु इच्छाशक्ति तो
हैं जहाँ सीता वहाँ हनुमान को ले जाएगी
गाँव की बोली तुझे शर्मिंदगी देने लगी
ये बनावट ही तेरी पहचान को ले जाएगी