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नाम दे लेते हो तुम इसे / संजय अलंग

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तुमने सपेरे का खेल देखा उसके डरावने साँप देखे न देखा उस सपेरे को जो खेल रहा था मौत से या खेल रही थी मौत उससे

देखा तुमने कठपुतली वाले के खेल देखीं उसकी सुन्दर कठपुतलियाँ देखा नहीं कठपुतली साधक को अद्वितीय थी, तन्मयता जिसकी सबकुचा सधा था सटीक, उंगलियों में

उसके क़रतबी ज़ानवर देखे नहीं देखा मदारी को जो घूम रहा है ज़ानवर बना ज़ानवर के साथ

तुमने नट का खेल देखा कारनामें देखे उसके , हैरतअंग़ेज़ दाँतों तले अँगुलियाँ भी दबाईं पर नहीं देखा नट को

आओ, देखो खूब साँप, कठपुतली, ज़ानवर, क़ारनामें

देखना चाहते हो क्या तुम कभी सपेरे को, कठपुतली साधक को, मदारी को, नट को देख पाते हो तुम इन्हे भी कभी

जब देख पाते तुम इन्हें तो दिखता तुम्हें उनका पेट भी वह पेट जो साँप, कठपुतली, ज़ानवर और आदमी नचाता है क़ारनामें दिखवाता है नाम दे लेते हो तुम इसे-कला

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