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गाँव की समझी कभी क़ीमत नहीं .. / ओमप्रकाश यती

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गाँव की समझी कभी क़ीमत नहीं
रौशनी को शहर से फ़ुरसत नहीं

सत्य की ही जीत होगी अन्तत:
हर कोई इस बात से सहमत नहीं

क्या चुनावों का यही निष्कर्ष है ?
सज्जनों के साथ है जनमत नहीं

ठीक है वो लोग हैं भटके हुए
प्रेम है इसकी दवा, नफ़रत नहीं

हर ज़रूरत पर दुआएँ चाहिए
यूँ बुज़ुर्गों की भले इज़्ज़त नहीं