गेज़ नदी / संजय अलंग
भरपूर बारिश में
जब रास्ते रूक जाते
सड़कें भी भर जातीं
पायांचे मुड़ जाते
खेत लबालब होते
धान रोपे जाने लगते
रोपाई गीत सुनाई पड़ते
साँझ को सूप-पत्ते की छातानुमा टोपी लिए और
कीचड़-काँदों से लथ-पथ
महिलाओं की कतार
बगुलों के झुंड़ की तरह
घर लौटती दिखती
तब गेज़ पूरे उफान पर आती
और सार्थक होता गेज नाम होना
झाग या फेन का ही तो पर्याय है गेजा
गेज़ का उफान देखने उमड़ता कस्बा
छाता उठाए पैदल, साईकल पर
पड़ते निकल सब, गेज़ की ओर
शताब्दी पुराना पुल भर जाता, लोगों से
जितना उफान, उतनी भीड़
उतनी ही छुट्टी, उतना ही उत्साह
यह उत्साह खेतों के भरे रहने का
पानी बने रहने का
खूब खेल होते बारिश में
अल्हाद में डूबते लोग
उत्सव धूम-धाम से होते
गणेश पूजा,दुर्गा पूजा,दशहरा,दीपावली,काली पूजा
ईश्वर के धन्यवाद हेतु
गेज़ का पूर आना
खुशहाली का पूरना होता
पानी का बने रहना होता
सुनता हूँ मैं कि अब
टूट ही जाती है, अक्सर
गेज़ की धार