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बहक गये बातो में/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

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बहक गये बातो में

आतिशी हवाओं के
घूम रहे हरकारे
दहक रहे फूलों के
सीनों में अंगारे

मौसम के तेवर भी
लगते कुछ तीखे हैं
सूरज के रंग ढंग
दुश्मनों सरीखे हैं
मरुथल से प्यासे हैं
उपवन के रखवारे

बिजलियाँ गिराने को
उत्कंठित बादल हैं
साँसो के हरे भरे
नन्दनवन घायल हैं
बहक गये बातों मे
गाँव,गली, चौबारे

पथरायी चौखट ने
दरवाजे बन्द किये
घबरायी-चीखों ने
सन्नाटे भंग किये
आँगन की किस्मत में
आयें हैं बँटवारे
दहक रहे फूलों के
सीनों में अंगारे