भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चिड़िया और चिरौटे / अवनीश सिंह चौहान
Kavita Kosh से
Abnish (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:38, 18 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Po...' के साथ नया पन्ना बनाया)
घर-मकान में
क्या बदला है
गौरैया रूठ गई
भाँप रहे
बदले मौसम को
चिड़िया और चिरौटे
झाँक रहे
रोशनदानों से
कभी गेट पर बैठे
सोच रहे
अपने सपनों की
पैंजनिया टूट गई
शायद पेट से
भारी चिड़िया
नीड़ बुने, पर कैसे
ओट नहीं
कोई छोड़ी है
घर पत्थर के ऐसे
चुआ डाल से होगा
अंडा
किस्मत ही फूट गई