मेरे मनुआं 
जीवन है तो
जीवन-भर 
पड़ता है तपना
जीवन-पंछी 
बात न माने 
चंचल कितना- 
नभ को ताने 
इसे सिखा तू 
तिरना-उड़ना 
और दिखा तू 
सुन्दर सपना 
नदिया जैसी 
चाल निराली 
भरी हुई है 
या है खाली 
कितनी उथली
कितनी गहरी 
तू ही नापे 
तू ही नपना 
उम्र तम्बूरा 
तार न बोले 
ठीक लगें सुर 
तो मुँह खोले 
बिन गुरुवर के 
जाने कैसे 
क्या कुछ भीतर 
क्या कुछ अपना