Last modified on 18 मार्च 2012, at 20:25

श्रम की मंडी / अवनीश सिंह चौहान

Abnish (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:25, 18 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Po...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बिना काम के
ढीला कालू
मुट्ठी झरती बालू

तीन दिनों से
आटा गीला
हुआ भूख से
बच्चा पीला

जो भी देखे
घूरे ऐसे
ज्यों शिकार को भालू

श्रम की मंडी
खड़ा कमेसुर
बहुत जल्द
बिकने को आतुर

भाव
मजूरी का गिरते ही
पास आ गए लालू

बीन कमेसुर
रहा लकड़ियां
तार-तार हैं
मन की कड़ियां

भूने जाएंगे
अलाव में
नई फसल के आलू