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उसका खाता / अवनीश सिंह चौहान
Kavita Kosh से
फटे बांस में
पैर अड़ा कर
चलता था उसका खाता
भार बना
धरती का घूमे
जैसे कोई था हथियार
इसे डराए
उसे सताए
बनता सबका तारनहार
किससे कितना
लाभ कमाना
उसका इतना था नाता
हुक्का-पानी
बंद उसी का
जिसने भी ना मानी बात
करे फ़जीहत
मग में उसकी
दिखा-दिखा अपनी औकात
घड़ा पाप का
भरा हुआ था
फिर क्यों, किसको वह भाता
बाहुबली था
राजनीति में-
पाँव जमाकर छोड़ी छाप
बना सरगना
अपने दल का
वैर बढ़ाकर अपने आप
राम नाम सत
आया जल्दी
माटी उसका था खाता