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चुप बैठा धुनिया / अवनीश सिंह चौहान
Kavita Kosh से
सोच रहा
चुप बैठा धुनिया
भीड़-भाड़ वह
चहल-पहल वह
बंद द्वार का
एक महल वह
ढोल मढ़ी-सी
लगती दुनिया
मेहनत के मुंह
बंधा मुसीका
घुटता जाता
गला खुशी का
ताड़ रहा है
सब कुछ गुनिया
फैला भीतर तक
सन्नाटा
अंधियारों ने
सब कुछ पाटा
कहाँ -कहाँ से
टूटी पुनिया