सोभा मेरे स्यामहि पै सोहै / सूरदास
राग गौरी
सोभा मेरे स्यामहि पै सोहै ।
बलि-बलि जाउँ छबीले मुख की, या उपमा कौं को है ॥
या छबि की पटतर दीबे कौं सुकबि कहा टकटोहै ?
देखत अंग-अंग प्रति बालक, कोटि मदन-मन छोहै ॥
ससि-गन गारि रच्यौ बिधि आनन, बाँके नैननि जोहै ।
ससि -गन गारि रच्यौ बिधि आनन, बाँके नैननि जोहै ॥
सूर स्याम-सुंदरता निरखत, मुनि-जन कौ मन मोहै ॥
भावार्थ :-- सुन्दरता तो मेरे श्यामपर ही शोभित होती (फबती) है । उनके सुन्दरमुखपर बार-बार बलिहारी जाऊँ; जिसके साथ उसकी (उस मुखकी) उपमा दी जा सके ,ऐसा है ही कौन? इस सौन्दर्यकी तुलना में रखनेके लिये कवि क्यों व्यर्थ इधर-उधर टटोलता है? मोहनके अंग-प्रत्यंगकी छटा देखकर करोड़ों कामदेवोंका मन मोहित हो जाता है ।(लगता है कि) ब्रह्माने अनेकों चन्द्रोंको निचोड़कर मोहन का मुख बनाया है, अपने तिरछे नेत्रोंसे यह (श्याम) देख रहा है । सूरदासजी कहते हैं कि श्यामसुन्दरकी सुन्दरताका दर्शन करते ही मुनिजनोंका मन भी मोहित हो जाता है ।