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क्यों छुएँ हम दौड़ कर / राजेश शर्मा

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क्यों छुएँ हम दौड़ कर,कुछ पल नए, जबकि हर इक पल हमारे साथ है.
खोजतीं पीछे फिरेंगी मंजिलें ,कौन सा संबल हमारे साथ है.
 
बस तनिक सा और चलकर आदमी,बैठ कर बातें करेगा मातमी,
रह के मीठे कुंए चुक जाएँगे ,तुम बचा रखना कहीं अपनी नमी.
प्यास मरुथल की सताएगी हमें ,और थोड़ा जल हमारे साथ है.
 
खूब भर जाए दिशाओं में ज़हर,आँधियों का कोप हो आठों पहर,
जो घरोंदा हो किसी पीड़ा टेल, छू नहीं सकती उसे कोई लहर.
क्या उड़ाएगी हमें बहकी हवा,गीत विन्ध्याचल हमारे साथ है.
 
पारदर्शी छतरियाँ हैं धूप में ,दाग़ तो कोई लगेगा रूप में,
वो, कि यायावर जिसे जीवन मिला, जी नहीं सकता किसी प्रारूप में.
हम ऋणी हें धूप के, बरसात के,जन्म से बादल हमारे साथहै.