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इस धरती पर किसी जगह / विवेक तिवारी

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इस धरती पर
किसी जगह
समुद्र की लहरों से
बहुत दूर

जीवन के
हर एक सुख-दुख
दर्द-बेचैनी
और अकेलेपन से बेखबर

प्रेम में सम्मोहित
ह्रदय के पन्नों पर दर्ज

तुम पर लिखी
हर एक कविता
जब तुम्हारे सामनें
फीकी लगने लगती है

तो इस दुनिया की
रंगीनियों को किनारे कर
चारो तरफ हावी होते
तुम्हारे ख्वाबों-खयालों के
ढ़ेरों-सिलसिलो के बीच
कहीं भीतर से ईजाद होती
तुम्हारे मन को
पा लेने की एक चाह

और फिर
इन आँखों में
प्रेम की गहन परछाइयों
और ख्वाबों की
फिसलन भरी नीव पर
तुम्हारी शख्सियत का
गजब सा नशा

शायद
एक सपना
कोई कोरी भावुकता
या उसके अतिरिक्त
खैर जो भी है

पर आज भी
इन युगों के अंतरालों के पार
पुराने नगरों की झूमती हरियाली के बीच
मन तो होता है
तुमसे मिलने का
और कुछ
अधूरे शब्द कहने का ।