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शायद दुनिया नहीं जानती / विवेक तिवारी
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शायद दुनिया नहीं जानती
हिमशिखरों पर रहती
उस राजकुमारी के बारे में
जिसके एक इशारे पर
बहती है हवा
बहता है जल
बदलती हैं ऋतुएं
बदलता है आकाश का रंग
और ये भी नहीं जानती
कि उसकी आँखें
उसकी हंसी
उसका चेहरा
उसके शब्द
और उसकी सादगी
कामना जगाकर
मंत्र-मुग्ध कर देती हैं मुझे
सिर्फ इतना ही नहीं
न जानें
कितने कल्पों,ऋतुओं,संवत्सरों में
गूंजता हुआ
उसको संबोधित
मेरा हर-एक विचार
हर-एक गीत
हर-एक कविता
हर-एक साहित्य
आभूषण है मेरा
उसको सजाने के लिये
हालांकि
उसके खो जाने के
तमाम डरों के बावजूद
उससे बिना-मिले
बिना-कहे
उसकी हर एक भावना से बेखबर
मैने उससे
एक रिश्ता बनाया है
एक-तरफा प्रेम का
जो शायद कभी खत्म नहीं होगा..।