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इस बियावान में / मदन गोपाल लढ़ा

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जो जानता हूँ
वह सच नहीं है
जो सच है
उसे जान नहीं पाया हूँ
यहाँ फकत रीतापन है।

सवालों के कांटों को
नहीं बुहार पाया
कोई समाधान,
भला आधे-अधूरे विश्वासों
खंडित आस्थाओं के भरोसे
कभी मिले हैं भगवान ?

कब तक भटकुँगा
इस बियावान में।