चुल्लू भर
पानी में ही
हमारा दर्पण है ...
नकल में
खो रहे हैं अक्ल
भाग में
छोड़ रहे हैं
संस्कृति ...
सेंध लगवाने
को रखी
हैं खिड़कियाँ
खुली ...
खुली -सम्पदा
को लूट रहें
विदेशी
यहाँ- वहाँ
हम कबूतर की
बंद आँख से
देख रहें
हैं - बिल्ली ...