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सफ़ेद सड़क काली सड़क / मोहन राणा

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कई शहरों, ठिकानों और बेनाम जगहों से गुज़रती हैं जो

दाएँ-बाएँ मुड़ती कभी

मीलों सीधे क्षितिज को छूती

कभी चौड़ी होती कभी हो जाती सँकरी

कभी घुमाव लेती उतरती ढलानों पर

अंतहीन दो जुड़वाँ सड़कें


लम्बी दूरी की रात्रि-बसें

ढाबे,सूखी रोटियाँ और तीन बजे रात दाल फ़्राई

पीछे कहीं अंधेरे में खेत

वनस्पतियों की ठण्डी गंध

ऊंघ रहा है बिजूखा कहीं

तारों से भिदे आकाश नीचे

08.11.1991