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जानॆं किससॆ मिली प्रॆरणा / राजबुन्देली

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        कब मैना मन मुस्कानी है, कब बॊलॆ वह कॊयल कागा !!
        जानॆं किससॆ मिली प्रॆरणा, और सृजन का अंकुर जागा !!

शब्द-सुमन चुननॆं मॆं मॆरा,आधा जीवन बीता,
अखिल विश्व का चिंतन,था लगता रीता-रीता,
कभी ढूंढ़ता मॆघदूत मैं,तॊ कभी खॊजता गीता,
मीरा राधा और अहिल्या, कभी द्रॊपदी सीता,
       कॆवट और भागीरथ बन कर, क्या-क्या वर मैं मांगा !!१!!
       जानॆं किससॆ मिली प्रॆरणा, और.................

कभी शंभु कैलाशी बन,मैनॆ पिया ज़हर का प्याला,
कभी जूझता लहरॊं सॆ, मैं बनकर मांझी मतवाला,
कभी समय सॆ लड़नॆं,लॆ कर अनजाना लक्ष्य चला,
कभी अंधॆरॊं कॆ आंगन मॆं,बन कर कॆ मैं दीप जला,
       कभी कल्पना की सीढ़ी चढ़, मैं पार क्षितिज कॆ भागा !!२!!
       जानॆं किससॆ मिली प्रॆरणा, और....................

कितनी बार हिमालय पर, मैं उतरा और चढ़ा हूं,
कितनॆं युद्ध स्वयं सॆ मैं, खुद कितनॆं बार लड़ा हूं,
आज़ाद-भगत की गाथायॆं, अगणित बार पढ़ीं मैनॆं,
लक्ष्मीबाई की प्रतिमांयॆं, अगणित बार गढ़ी मैनॆं,
        तुलसी सूर निराला खॊजा, कभी खॊजता मैं रांणा सांगा !!३!!
        जानॆं किससॆ मिली प्रॆरणा, और........................

लाल -बाल -पाल की दॆखीं, मैनॆं बार-बार तस्वीरॆं,
क्रान्ति-सुतॊं कॆ हांथॊं मॆं, दॆखीं कसी लौह जंज़ीरॆं,
गांधी की आंखॊं मॆं था, रक्त-हीन क्रांति का सपना,
जहां रक्त सॆ रंगा तिरंगा, वहां शांति-माला जपना,
        घायल पड़ा जटायू दॆखा, कहीं बांण क्रौंच उर मॆं लागा !!४!!
        जानॆं किससॆ मिली प्रॆरणा, और...........................

कितनॆं दिन मैं दॆश काल कॆ, बाहुपास मॆं फंसा रहा,
कितनॆं दिन मैं बन बैरागी, निर्जन वन मॆं बसा रहा,
कितनॆं दिन तक गली-गली,मैं घूमा बन कर बंज़ारा,
शब्दॊं कॆ इस चक्रपात मॆं, मैं फिरता था मारा मारा,
        कॊल्हू खींचा, रहट भी खींचा, कभी खींचता था मैं तांगा !!५!!
        जानॆं किससॆ मिली प्रॆरणा, और........................

वर्षॊं तक हॊ दिशा -भ्रमित, मैं उड़ता रहा गगन मॆं,
वर्षॊं तक खॊजा है मैंनॆं,वह शब्द सत्य कण कण मॆं,
वर्षॊं तक बन वसंत मैं, भी इतराया फिरा चमन मॆं,
वर्षॊं तक कंचन बन कर, मैं तपता रहा अगन मॆं,
       कई दिनॊं तक चरखॆ ऊपर, मैं घूमा हूं बन कर धागा !!६!!
       जानॆं किससॆ मिली प्रॆरणा, और...........................

कितनॆं सावन झूलॆ दॆखॆ, कितनी हॊली और दीवाली,
कितनी स्याह अंधॆरॊं मॆं, लिपटी रातॆं काली- काली,
कितनॆं दिन पतझड़ कॆ दॆखॆ, बन कर कृंदित माली,
कितनॆं दिन तक चंचरीक सा, मैं भटका डाली-डाली,
        कितनॆं दिन चातक बन मैंनॆ, स्वांति बूंद जल मांगा !!७!!
        जानॆं किससॆ मिली प्रॆरणा, और...........................

कितनी रातॊं की नींदॆं मैं,पलकॊं पर लियॆ फिरा हूं,
कितनी दुर्गम राहॊं मॆं, खाकर ठॊकर उठा गिरा हूं,
कितनॆं दिन झॆली, मृग-तृष्णा, काटॆ कितनॆं लंघन,
तब मुझकॊ बांधा है, इस कविता नॆं यॆ रक्षा-बंधन,
       रॆशम धागॆ सॆ "राजबुंदॆली", हुआ यॆ कृतार्थ अभागा !!८!!
       जानॆं किससॆ मिली प्रॆरणा, और..........................