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इंसां को इंसां से... / उत्‍तमराव क्षीरसागर

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इंसां को इंसां से बैर नहीं है
फि‍र भी इंसां की ख़ैर नहीं है

ये क़ाति‍ल जुल्‍मी औ' डाकू लुटेरे
अपने ही हैं सब ग़ैर नहीं हैं

अच्‍छाई की राहें हैं हज़ारों
उन पर चलने वाले पैर नहीं हैं

दूर बहुत दूर होती हैं मंजि‍लें अक्‍सर
लंबा सफ़र है यह कोई सैर नहीं है