भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर से बाहर / कुमार अनिल

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:02, 2 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार अनिल |संग्रह= }} {{KKAnthologyDeath}} {{KKCatKavita}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर से बाहर आया मैं
सबसे हुआ पराया मैं

कोशिश तो सबने ही की
किससे गया भुलाया मैं

चुनने निकला था मोती
कुछ पत्थर ले आया मैं

बस तब तक ही जीवित था
जब तक हँसा हँसाया मैं

इक अनबूझ पहेली का
उत्तर रटा रटाया मैं

इंसानों की बस्ती से
जान बचा कर आया मैं

अपने अन्दर झाँका था
खुद से ही शरमाया मैं

बिना पता लिखा ख़त हूँ
वो भी खुला खुलाया मैं