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आँख अश्कों का समंदर / कुमार अनिल
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आँख अश्कों का समंदर
आँख अश्को का समंदर है तो है
वक्त के हाथों में खंजर है तो है
मैंने कब माँगी खुदा तुझसे ख़ुशी
दर्द ही मेरा मुकद्दर है तो है
फूल कुछ चाहे थे तुझसे बागबां
हाथ में तेरे भी पत्थर है तो है
थक गया हूँ अब तो सोने दो मुझे
सामने काँटों का बिस्तर है तो है
मेरे संग भी है मेरी माँ की दुआ
तू मुकद्दर का सिकंदर है तो है
तूने ही कब घर को घर समझा 'अनिल'
घर से जो तू आज बेघर है तो है