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क्यों हो निराश ? / प्रभात

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क्यों ? आख़िर क्यों हो निराश ?
क्या शमशान पर बरसते हुए
बारिश निराश होती है?
एक मनुष्य के आकार की राख की ढेरी पर
आ रही है उजली चाँदनी

राख की ढेरी में उँगलियों की अस्थि में
समा रही है ओंस
जगह-जगह शमशान में
ओलों का कूड़ा, बुहार रही है हवा
धूप अभी-अभी पहुँची है वहाँ