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आबूदाना / वर्तिका नन्दा

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पता बदल दिया है
नाम
सड़क
मोहल्ला
देश और शहर भी

बदल दिया है चेहरा
उस पर ओढ़े सुखों के नकाब
झूठी तारीफ़ों के पुलिंदों के पुल

दरकते शीशे के बचे टुकड़े
उधड़े हुए सच

छुअन के पल भी बदल दिए हैं
संसद के चौबारे में दबे रहस्यों की आवाज़ें भी
खंडहर हुई इमारतों में दबे प्रेम के तमाम क़िस्सों पर
मलमली कपड़ों की अर्थी बिछा देने के बाद
चाँद के नीचे बैठने का अजीब सुख है

सुख से संवाद
चाँद से शह
तितली से फुदक माँग कर
एक कोने में दुबक
अतीत की मटमैली पगडंडी पर
अकेले चलना हो
तो कहना मत, ख़ुद से भी

ख़ामोश रास्तों पर ज़रूरी होता है ख़ुद से भी बच कर चलना