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रोज़ एक कहानी / रचना श्रीवास्तव

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रोज़ एक कहानी
कहानी तो रोज़
काकी सुनाती थी
माँ रात में
न जाने कहाँ जाती थी
सुबह
कोई भूखा नही रहता था
आज भी
रात होने से डरती हूँ
काश!
इस डर के अंधेरों की सुबह हो