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हाइकु 31-40 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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31
काँपती देह
अभिशाप बुढ़ापा
टूटता नेह ।
32
जनता भेड़ें
जनसेवक -भेड़िए
खड़े बाट में ।
33
काला कम्बल
ओढ़ नाचती देखो
पागल कुर्सी ।
34
आपकी बातें
खुशबू के झरने
 चाँदनी रातें
35
पहला स्पर्श
रोम -रोम बना है
जल-तरंग
36
आज ये पल
जाह्नवी कल-कल
पावन जल
37
प्यार से भरे
नयन डरे-डरे
सन्ताप हरें
38
भोर-चिरैया
तरु पर चहके
घर महके
39
बेटी का प्यार-
कभी न सूखे ऐसी -
है रसधार ।
40
मोती –से आँसू
बहकर निकले
दमका रूप ।