खेलन जाहु बाल सब टेरत / सूरदास
राग सारंग
खेलन जाहु बाल सब टेरत।
यह सुनि कान्ह भए अति आतुर, द्वारैं तन फिरि हेरत ॥
बार बार हरि मातहिं बूझत, कहि चौगान कहाँ है ।
दधि-मथनी के पाछै देखौ, लै मैं धर्यौ तहाँ है ॥
लै चौगान-बटा अपनैं कर, प्रभु आए घर बाहर ।
सूर स्याम पूछत सब ग्वालनि, खेलौगे किहिं ठाहर ॥
भावार्थ ;-- (माता ने कहा-) `लाल ! खेलने जाओ, सब बालक तुम्हें पुकार रहे हैं ।'यह सुनकर कन्हाई अत्यन्त आतुर हो उठे । बार-बार द्वारकी ओर देखने लगे । बार-बार मोहन मैयासे पूछने लगे- यह सुनकर कन्हाई अत्यन्त आतुर हो उठे । बार-बार द्वारकी ओर देखने लगे । बार बार मोहन मैयासे पूछने लगे -`मेरा गेंद, खेलनेका बल्ला कहाँ है ?' (माता ने कहा--) दहीके माटके पीछे देखो, मैंने लेकर वहाँ रख दिया है ।' अपनेहाथमें बल्ला और गेंद लेकर मोहन घरसे बाहर आये । सूरदासजी कहते हैं - श्यामसुन्दर सब ग्वाल-बालकों से पूछ रहे हैं- `किस स्थानपर खेलोगे?'