भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या लिखूं मूल कुमाउनी कविता / नवीन जोशी 'नवेंदु'
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:00, 16 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नवीन जोशी ’नवेंदु’ }} {{KKCatKavita}} <poem> क्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
क्या लिखूं (मूल कुमाउनी कविता)
कि दि सकूं मिं
कैकैं लै ?
वी,
जि-
मकें मिलि रौ
दुनीं बै।
कि सु नई सकूं मिं
कैकैं लै ?
वी,
जि-
पढ़ि-सुणि-गुणि
राखौ यैं बै।
कि ल्येखि सकूं मिं
त्वे हुं ?
वी,
जि-
त्वील, कि कैलै
कत्ती-कबखतै
कौ हुनलै
कि ल्यख हुनल
जरूड़ै।
अतर-
कॉ बै ल्यूंल मिं
के, तुकैं दिंण हुं,
कि सुणूंल तुकैं नईं ?
कि ल्यखुंल त्वे हुं
अलगै
य दुनी है !
मिं के परमेश्वर जै कि भयूं ।