राग गौरी
हरि तब अपनी आँखि मुँदाई ।
सखा सहित बलराम छपाने, जहँ तहँ गए भगाई ॥
कान लागि कह्यौ जननि जसोदा, वा घर मैं बलराम ।
बलदाऊ कौं आवत दैंहौं, श्रीदामा सौं काम ॥
दौरि=दौरि बालक सब आवत, छुवत महरि कौ गात ।
सब आए रहे सुबल श्रीदामा, हारे अब कैं तात ॥
सोर पारि हरि सुबलहि धाए, गह्यौ श्रीदामा जाइ ।
दै-दै सौहैं नंद बबा की, जननी पै लै आइ ॥
हँसि-हँसि तारी देत सखा सब, भए श्रीदामा चोर ।
सूरदास हँसि कहति जसोदा, जीत्यौ है सुत मोर ॥
भावार्थ :-- तब (खेलके प्रारम्भमें) श्यामने अपने नेत्र बंद करवाये । सखाओं के साथ बलरामजी इधर-उधर भागकर छिप गये । यशोदाने (श्यामके) कानों से लगकर कहा- `बलराम उस घरमें हैं ।' (मोहन बोले -) दाऊ दादाको आने दूँगा, मुझे तो श्रीदामा से काम है (उसे छूकर चोर बनाना है ) सभी बालक दौड़-दौड़कर आते हैं और व्रजरानीकाशरीर छूते हैं, सब आ गये । केवल सुबल और श्रीदामा रह गये । (तब मैयाने कहा-) लाल!अबकी बार तो तुम हारते दीखते हो ।' ललकार कर श्यामसुन्दर (धोखा देनेके लिये) सुबलकीओर दौड़े; किंतु जाकर श्रीदामाको पकड़ लिया, फिर बार-बार नंदबाबाकी शपथ दिलाकर उसे माताके पास ले आये । सब सखा हँसते हुए बार-बार ताली बजाने लगे -`श्रीदामा चोर हो गये ।' सूरदासजी कहते हैं कि श्रीयशोदाजी हँसकर कहने लगीं, `मेरा पुत्र विजयी हुआ है ।'