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सफल जन्म प्रभु आजु भयौ / सूरदास

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राग बिलावल


सफल जन्म प्रभु आजु भयौ ।
धनि गोकुल, धनि नंद-जसोदा, जाकैं हरि अवतार लयौ ॥
प्रगट भयौ अब पुन्य-सुकृत-फल , दीन बंधु मोहि दरस दयौ ।
बारंबार नंद कैं आँगन, लोटन द्विज आनंदमयौ ॥
मैं अपराध कियौ बिनु जानैं, कौ जानै किहिं भेष जयौ ।
सूरदास-प्रभु भक्त -हेत बस जसुमति-गृह आनन्द लयौ ॥

भावार्थ :-- (ब्राह्मण की समझ में बात आ गयी । वह बोला -) `प्रभो ! मेरा जीवन आज सफल हो गया । यह गोकुल धन्य है, श्रीनन्द जी और यशोदा जी धन्य हैं, जिनके यहाँ साक्षात् श्रीहरि ने अवतार लिया, मेरे समस्त पुण्यों एवं उत्तम कर्मों का फल आज प्रकट हुआ जो दीनबन्धु प्रभु ने मुझे दर्शन दिया ।'(इस प्रकार कहता) ब्राह्मण आनन्दमग्न होकर बार-बार श्रीनन्द जी के आँगन में लोट रहा है । (वह श्यामसुन्दर से प्रार्थना करता है) प्रभो! बिना जाने (अज्ञानवश) मैंने अपराध किया (आपका अपमान किया, मुझे क्षमा करें)। पता नहीं किस वेश से (मेरे किस साधन से) आप जीते गये (मुझ पर प्रसन्न हुए) । सूरदास जी कहते हैं कि मेरे प्रभु ने भक्त के प्रेमवश श्रीयशोदा जी के घर में यह आनन्द-क्रीड़ा की है ।