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शहर / कुँअर रवीन्द्र

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इस शहर में
एक घर
जहाँ मै ठहर गया हूँ
रहस्य में लिपटा सा
फिर भी पहचाना सा
और घर में
एक छज्जा
छज्जे पर मै
सामने एक घर,फिर दो घर,ढेर सारे घर
घर
घर
घर पर घर
पतझर में बिखरे पत्तो की तरह