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चूड़ियों के लिए / प्रमोद कुमार शर्मा

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बीड़ी के बंडल में से
निकलता है स्त्री का केश
मैं लगता हूँ देखने उसे
दिखती है केश में दौड़ती
एक प्राण चेतना-
बैठी घुटनों के बल ठठरी-सी वह
पत्तों के ढेर में
एक-मेक हो चुकी है
जिसकी घ्राण ग्रथियां
तम्बाकू की गंध से
जरूर ही एक क्षण थक कर
पौंछा होगा उसने अपने
चूड़ी भरे हाथों से
माथे का पसीना
और केश टूटकर गिर पड़ा होगा
पत्तों के बीच कहीं
क्या कुछ करना पड़ता है स्त्रियों को
चूडिय़ों के लिए।