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मत करना विश्वास / अशोक कुमार पाण्डेय

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मत करना विश्वास / अगर रात के मायावी अँधकार में
उत्तेजना से थरथराते होठों से / किसी जादुई भाषा में कहूँ
सिर्फ़ तुम्हारा यूँ ही मैं

मत करना विश्वास / अगर सफलता के श्रेष्ठतम पुरुस्कार को
फूलों की तरह सजाता हुआ तुम्हारे जूड़े में
उत्साह से लड़खड़ाती भाषा में कहूँ
सब तुम्हारा ही तो है

मत करना विश्वास / अगर लौटकर किसी लम्बी यात्रा से
बेतहाशा चूमते हुए तुम्हें / एक परिचित-सी भाषा में कहूँ
सिर्फ़ तुम ही आती रही स्वप्न में हर रात

हालाँकि सच है यह / कि विश्वास ही तो था वह तिनका
जिसके सहारे पार किए हमने / दुख और अभावों के अनंत महासागर
लेकिन फिर भी पूछती रहना गाहे-ब-गाहे
किसका फ़ोन था कि मुस्कुरा रहे थे इस कदर ?
पलटती रहना यूँ ही कभी-कभार मेरी पासबुक
करती रहना दाल में नमक जितना अविश्वास

हँसो मत / ज़रूरी है यह
विश्वास करो / तुम्हें खोना नहीं चाहता मैं...