भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संचार की नई अवस्था / मनमोहन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:05, 26 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनमोहन |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> यह लीजि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह लीजिए जनाब लम्बा चक्कर लगा कर
एक बार फिर हम लोग
उसी जगह आते हैं
जो रास्ते पहले छोड़ दिए थे

खाई बन कर हमारे समाने हैं
जितना एक-दूसरे को देखते हैं
उससे कहीं ज्य़ादा बीच की खाई को

बातें भी एक-दूसरे से कम
ख़ाई से ज्य़ादा करते हैं
जैसे अब खाई ही अकेली पुल बची है