भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुनिया की मासूम आंखें / कमलेश्वर साहू
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:37, 26 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश्वर साहू |संग्रह=किताब से निक...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मुनिया रोज ही देखती है
गौर से
दादी के चेहरे को
झांकती है रोज ही
दादी की
निश्तेज आंखों में
हर सुबह रौशनी
यहीं से फूटती है
मुनिया नहीं कहती
कहती हैं
मुनिया की मासूम आंखें !