भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गठरी / कमलेश्वर साहू

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:24, 26 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश्वर साहू |संग्रह=किताब से निक...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


पुरूष की तमाम प्रताड़नाओं के बाद भी
बची हुई थी स्त्रियां
और दुनिया की अंतिम स्त्रियां नहीं थीं
ऐसी ही बची हुई स्त्रियों में से
एक स्त्री के पास
दुख की गठरी थी
दूसरी के पास
सुख की
दोनों एक दूसरे को
जानती भी नहीं थीं पहले से
इसे संयोग ही कहें
कि राह चलते
टकरा गईं आपस में
पेड़ के नीचे
स्त्रियां थीं
तो बतियाने का मन हुआ उनका
वे बतियाने लगीं आपस में
परिचय बढ़ा
तो एक अपनी
दुख की गठरी खोल दी
दूसरी ने सुख की
जब वे उठकर जाने लगीं
तो दुख की गठरी हल्की हो चुकी थी
और सुख की गठरी भारी
आपको बेहद आश्चर्य होगा जानकर
जब वे दोनों लौटीं
अपने अपने रास्ते
बेहद खुश थीं
खुश खुश लौटीं !