रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ने इस संग्रह में अपने जून 1986 से फ़रवरी 2011 तक 494 हाइकु संगृहीत किए हैं ।आपने कहा है -“ कोई विशिष्ट गाँव ,शहर या जिला किसी विधा का स्कूल नहीं हो सकता।हमें इस कबिलाई सोच और संकीर्णता से उबरना चाहिए । सहृदय रचनाकार अगर मेरठ या फ़रीदाबाद का हो तो उसे औरों से कमतर रचनाकार नहीं कहा जा सकता । जो प्रामाणिक अनुभूतिजन्य रचेगा , उसी का रचा हुआ रसज्ञों को रुचेगा और वही इस साहित्य धारा में बचेगा भी । प्रसिद्ध हाइकुकार डॉसुधा गुप्ता के अनुसार -
‘हिमांशु’जी के मन्तव्य के अनुसार ’पके आम से / सहज चुए रस/ हाइकु वैसे’ अर्थात् ‘सहज काव्य-रस’ हाइकुकार शीर्ष स्थान देता है । ‘मेरे सात जनम’ हाइकु-संग्रह सात खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड का शीर्षक है -‘उजाला बहे’। प्रथम हाइकु में वाणी -वन्दना करके हाइकुकार भाव-भीनी ज्योति-अर्चना आरम्भ करता है। वस्तुत: यह खण्ड आलोक को समर्पित है! अन्धकार से त्रस्त मानवता के लिए शुभ सन्देश ,विश्वास से लबालब भरा आश्वासन और आह्वान सभी कुछ एक साथ है यहाँ-
आओ बुनेंगे / उजाले की चादर/ भावों से भर
अँधेरे हटा / उगाएँगे सूरज / हर आँगन
नदिया भरे / धरा से नभ तक उजाला बहे
आँधियों को चुनौती:
आँधियों का क्या / बुझाएँगी वे दीप / हमें जलाना
संग्रह का दूसरा खण्ड ‘नभ के पार’ कवि की अदम्य जिजीविषा और संघर्ष करने की जुझारू प्रवृत्ति को रेखांकित करता है :
मैं नहीं हारा/है साथ न सूरज/ चाँद न तारा
मरने के सौ / तो हज़ार बहाने / हैं जीवन के
काँटे जो मिले /जीवन के गुलाब / उन्हीं से खिले ।