भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उकताहट / कंस्तांतिन कवाफ़ी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:32, 9 मई 2012 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=कंस्तांतिन कवाफ़ी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ए...' के साथ नया पन्ना बनाया)
एक ऊबाने वाला दिन लाता है दूसरा
बिलकुल वैसा ही उबाऊ ।
एक-सी चीज़ें घटेंगी,
वे घटेंगी फिर...
वही घड़ियाँ हमें पाती हैं और छोड़ देती हमें ।
गुज़रता है महीना एक और दूसरे में आता ।
कोई भी सरलता से घटनाएँ भाँप ले सकता है आने वाली;
वे वही हैं बीते दिन की बोझिल वाली ।
और ख़त्म होता है आने वाला कल बिना एक आने वाला कल लगे
अँग्रेज़ी से अनुवाद : पीयूष दईया