राग गौरी
सखा सहित गए माखन-चोरी ।
देख्यौ स्याम गवाच्छ-पंथ ह्वै, मथति एक दधि भोरी ॥
हेरि मथानी धरी माट तैं, माखन हो उतरात ।
आपुन गई कमोरी माँगन, हरि पाई ह्याँ घात ॥
पैठे सखनि सहित घर सूनैं, दधि-माखन सब खाए ।
छूछी छाँड़ि मटुकिया दधि की, हँसि सब बाहिर आए ॥
आइ गई कर लिये कमोरी, घर तैं निकसे ग्वाल ।
माखन कर, दधि मुख लपटानौ, देखि रही नँदलाल ॥
कहँ आए ब्रज-बालक सँग लै, माखन मुख लपटान्यौ ।
खेलत तैं उठि भज्यौ सखा यह, इहिं घर आइ छपान्यौ ॥
भुज गहि कान्ह एक बालक, निकसे ब्रजकी खोरि ।
सूरदास ठगि रही ग्वालिनी, मन हरि लियौ अँजोरि ॥
भावार्थ :-- (दूसरे दिन) सखाओंके साथ श्यामसुन्दर मक्खन-चोरी करने गये । वहाँ उन्होंने खिड़की की राहसे (झाँककर) देखाकि एक भोली गोपी दही मथ रही है । उसनेयह देखकर कि मक्खन ऊपर तैरने लगा है, मथानी को मटकेसे निकालकर रख दिया औरस्वयं (मक्खन रखनेकी) मटकी माँगकर लेने गयी,श्यामसुन्दर को यहीं अवसर मिल गया। वे सखाओंके साथ सुनसान घरमें घुस गये और सारा दही तथा मक्खन (सबने मिलकर) खा लिया और दहीका मटका खाली छोड़कर हँसते हुए सब घरसे बाहर निकल आये । इतनेमें वह (गोपी) हाथमें मटकी लिये आ गयी, उसने देखा कि) सब गोप-बालक उसके घरसे निकल रहे हैं । हाथमें मक्खन लिये, मुखमें दही लिपटाये श्रीनन्दनन्दन की छटा तो वह देखती ही रह गयी । (उसने पूछा)- `व्रजके बालकोंको साथ लेकर (यहाँ) कहाँ आये हो? मुखमें मक्खन (कैसे)लिपटा रखा है ?' (श्याम बोले)`मेरा यह सखा खेल मेंसे उठकर भाग आया और यहाँ इस घरमें आकर छिप गया था ।' (यह कहकर)कन्हाईने (पासके) एक बालकका हाथ पकड़ लिया और व्रजकी गलियोंमें चले गये । सूरदासजीकहते हैं कि वह गोपी तो ठगी-सी (मुग्ध) रह गयी, श्यामसुन्दरने प्रकाशमें (सबके सामने दिन-दहाड़े) उसके मनको हर लिया ।