भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुख ही सुख का सपना / राजकुमार कुंभज

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:40, 18 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकुमार कुंभज }} {{KKCatKavita}} <poem> जो आदमी ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो आदमी
अपने समूचे जीवन में
कभी भी, किसी भी कारण से
हुआ नहीं दुखी
वह, सुखी कैसे हो सकता है ?

सचमुच सच्चे सुख का तो मज़ा ही तब है
जबकि चखा हो स्वाद दुख का
दुख नहीं तो सुख नहीं

दुख ही सुख का सपना
दुख ही सुख-निशान पानी
दुख ही में छुपा है कोमलकांत सुख

जो आदमी
अपने समूचे जीवन में
कभी भी, किसी भी कारण से
हुआ नहीं दुखी
जिसने देखा नहीं दुख कभी
वह कैसे परखेगा पाएगा सुख अभी ?

सुख पाना है तो दुख माँगो
मोनालिसा की मुस्कुराहट पर मत जाओ
शोध करो कँटीले शोध
लेकर चु‍नौतियाँ अपार
एक छोटी-सी कोशिश भी
लौटा सकती है वह अकड़, वह जकड़
जो हो जाए
राजाओं-महाराजाओं की इतराहट विरुद्ध
और बनकर बड़ी चुनौती भी ।