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रात की स्मृति में दिन है / राजकुमार कुंभज

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रात की स्मृति में दिन है

जैसे कि एक ऐनक भी हुआ करती थी कभी
देखने, पढ़ने और समझने के लिए

अब के समय में दीवार पर टँगी है जो घड़ी
बंद है धड़कन उसकी

कुछ-कुछ परिचित, कुछ-कुछ अपरिचित
ऊँची चट्‍टान से खिसकते किसी कँकर जैसा

रात की स्मृति में दिन है ।