भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखौ माई ! बदरनि की बरियाई / सूरदास

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:16, 28 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} राग मलार देखौ माई ! बदरनि की बरियाई ।<br> कमल-नै...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग मलार

देखौ माई ! बदरनि की बरियाई ।
कमल-नैन कर भार लिये हैं , इन्द्र ढीठ झरि लाई ॥
जाकै राज सदा सुख कीन्हौं, तासौं कौन बड़ाई ।
सेवक करै स्वामि सौं सरवरि, इन बातनि पति जाई ॥
इंद्र ढीठ बलि खात हमारी, देखौ अकिल गँवाई ।
सूरदास तिहिं बन काकौं डर , जिहिं बन सिंह सहाई ॥


भावार्थ :-- `अरे! इन बादलों की जबरदस्ती तो देखो!' कमललोचन श्याम तो हाथ पर (पर्वत का) भार उठाते थे और ढ़ीठ इन्द्र ने झड़ी लगा रखी थी । जिसके राज्य में (रहकर)सदा सुख करते रहे, उसी से क्या बड़प्पन दिखाना। सेवक स्वामी से बराबरी करने चले -ऐसी बातों से सम्मान नष्ट ही होता है! देख तो, बुद्धि खोकर ढीठ इन्द्र हमारी बलि (भेंट) खाता था (हम व्रज के लोग जो इन्द्र के भी सम्मान्य हैं, उनके द्वारा की हुई पूजा स्वीकार करता था) सूरदास जी कहते हैं--जिस वनका सिंह (स्वामी) कन्हाई है,उस वन में भला, किसका भय ।