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चलो मीत / अंजू शर्मा

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चलो मीत,

चलें दिन और रात की सरहद के पार,

जहाँ तुम रात को दिन कहो

तो मैं मुस्कुरा दूं,

जहाँ सूरज से तुम्हारी दोस्ती

बरक़रार रहे

और चाँद से मेरी नाराज़गी

बदल जाये ओस की बूंदों में,

चलो मीत,

चलें उम्र की उस सीमा के परे

जहाँ दिन, महीने, साल

वाष्पित हो बदल जाएँ

उड़ते हुए साइबेरियन पंछियों में

और लौट जाएँ सदा के लिए

अपने देश,


चलो मीत,

चलें भावनाओं के उस परबत पर

जहाँ हर बढ़ते कदम पर

पीछे छूट जाये मेरा ऐतराज़ और

संकोच,

और जब प्रेम शिखर नज़र आने लगे

तो मैं कसके पकड़ लूं तुम्हारा हाथ

मेरे डगमगाते कदम सध जाएँ

तुम्हारे सहारे पर,


चलो मीत,

कि बंधन अब सुख की परिधि

में बदल चुका है

और उम्मीद की बाहें हर क्षण

बढ़ रही है तुम्हारी ओर,

आओ समेट लें हर सीप को

कि आज सालों बाद स्वाति नक्षत्र

आने को है,


चलो मीत,

कि मिट जाये फर्क

मिलन और जुदाई का,

इंतजार के पन्नों पर बिखरी

प्रेम की स्याही सूखने से पहले,

बदल दे उसे मुलाकात की

तस्वीरों में,


चलो मीत,

हर गुजरते पल में

हलके हो जाते हैं समय के पाँव,

और लम्बे हो जाते हैं उसके पंख,

चलो मीत आज बांध लें समय को

सदा के लिए,

अभी, इसी पल..............