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आजु बने बन तैं ब्रज आवत / सूरदास

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राग कान्हरौ


आजु बने बन तैं ब्रज आवत ।
नाना रंग सुमन की माला, नंदनँदन-उर पर छबि पावत ॥
संग गोप गोधन-गन लीन्ह, नाना कौतुक उपजावत ।
कोउ गावत, कोउ नृत्य करत, कोउ उघटत, कोउ करताल बजावत ॥
राँभति गाइ बच्छ हित सुधि करि, प्रेम उमँगि थन दूध चुवावत ।
जसुमति बोलि उठी हरषित ह्वै, कान्हा धेनु चराए आवत ॥
इतनी कहत आइ गए मोहन, जननी दौरि हिए लै लावत ।
सूर स्याम के कृत्य जसोमति, ग्वाल-बाल कहि प्रगट सुनावत ॥

भावार्थ :-- आज मोहन वन से सजे हुए आ रहे हैं । अनेक रंगों के पुष्पों की माला श्रीनन्दनन्दन के वक्षःस्थल पर शोभा दे रही है । साथ में गोपकुमार तथा गायों का समूह लिये अनेक प्रकार की चाल चलकर कुतुहल की सृष्टि करते आते हैं । कोई गाता है, कोई समय पर तान तोड़ रहा है, कोई उछलता है और कोई हाथ से तालियाँ बजाता है । गायें बछड़ों का स्मरण करके उनके लिये प्रेम से रँभा रही है और प्रेम से उमंग में भर कर थनों से दूध टपका रही हैं । श्रीयशोदा जी हर्षित होकर पुकार उठीं --`कन्हाई गायें चराकर आ रहा है । (उनके) इतना कहते ही मोहन आ गये, माता दौड़कर (उठाकर) उन्हें हृदय से लगा रही हैं । सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दर के (वन में किये) काम गोपबालक स्पष्ट वर्णन करके यशोदा जी को सुनाते हैं ।