भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यात्रा / मनोज कुमार झा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:57, 24 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज कुमार झा }} {{KKCatKavita‎}} <poem> मैं कहीं ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं कहीं और जाना चाहता था
   मगर मेरे होने के कपास में
   साँसों ने गूँथ दिए थे गुट्ठल ।

इतनी लपट तो हो साँस में
कि पिघल सके कुमुदिनी के चेहरे भर कुहरा

कि जान सकूँ जल में क्या कैसा अम्ल
मैं अपनी साँस किसी सुदेश को झुकाना चाहता था
   नहीं कि कहीं पारस है जहाँ मैं होता सोना

   बस, मैं अपना लोहा महसूस करना चाहता हूँ ।