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कुछ इस तरह / कमलेश्वर साहू

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हमारे जीवन में
प्रेम था कुछ इस तरह-
कभी छूने से पहले
खरगोश में बदल जाता मैं
कभी चखने से पहले
इमली में बदल जाती वह
कभी देखने से पहले
चांद में बदल जाता मैं
कभी चूमने से पहले
तितली में बदल जाती वह-
जीते / कुछ इसी तरह
करते हुए प्रेम
हम दोनों
और सोचते
सही गलत से परे
इसी तरह होना चाहिए
लोगों के जीवन में
प्रेम !