भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आवाज-तीन / कमलेश्वर साहू

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:10, 25 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश्वर साहू |संग्रह=किताब से निक...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मेरा दामन थामो
और चले आओ मेरे पास
गर पाना चाहते हो मुझे
मुझसे कहती थी एक आवाज
बरसों पहले
उस आवाज का दामन थामें
उसी के बुने धागे पर
चल रहा हूं बरसों से अविराम
फासला उतना ही है
जितना
बरसों पहले
थक तो नहीं गये
हार तो नहीं जाओगे-
आवाज वह
अब भी पूछ रही है मुझसे-
मर तो नहीं गई
मुझ तक पहुंचने की
तुम्हारी इच्छा !